Friday, July 8, 2016

पंजाब के 4 गांव बिकाऊ, कर्ज में डूबे किसानों ने लगाए पोस्टर

source : http://www.bhaskar.com/news-ht/PUN-JAL-OMC-village-ready-for-auction-in-punjab-news-hindi-5366176-PHO.html


पाक सीमा से सटे पंजाब के 4 गांवों के 99 फीसदी किसान कर्जदार हैं।
पाक सीमा से सटे पंजाब के 4 गांवों के 99 फीसदी किसान कर्जदार हैं।
फाजिल्का (पंजाब).भारत-पाक सीमा से सटे चार गांव बिकने के लिए तैयार हैं। यहां गांवों के किसानों ने पोस्टर लगाए हैं, जिन पर लिखा है, ''कोई भी रईस शख्स, टाटा, अंबानी या सरकार बोली लगाकर गांव खरीद सकती है।'' वहीं, इस मामले को पंजाब के मंत्री और लोकल एमएलए सुरजीत जियाणी ने विरोधियों की घटिया राजनीति करार दिया है। गांवों के 99% लोग कर्जदार...
- दरअसल, फाजिल्का के केरियां, मुठियां वाली, चानन वाला और चुल्हड़ी वाला गांवों की जमीन बंजर हो रही है और 99% किसान कर्ज में डूबे हैं।
- हालात ये हैं कि ढाई महीने से नहरों में पानी नहीं आया, फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। बैंक से लिया लोन भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
- एक किसान दविंदर सावनसुखा ने कहा, ''सरहद से सटे इन गांवों में कोई सुविधा नहीं है। कई सरकारें आती-जाती रहीं, लेकिन उनकी परेशानियां नहीं सुलझीं।''
- ''इसीलिए परिवार का पेट भरने के लिए किसानों ने गांव बेचने का फैसला लिया।''
- दूसरे किसान धर्मपाल बताते हैं, ''लड़के कुंवारे बैठे हैं, कोई भी गांवों में बेटे-बेेटियों का रिश्ता नहीं करता।''
सीमा पार से आती हैं गोलियां-बम
- चारों गांव पाकिस्तान की सीमा से सटे हुए हैं, इसलिए अक्सर सीमा पार से गोलियां और बम गिरते रहते हैं।
- अफसर भी परेशानियों के चलते गांव में आने से घबराते हैं।
- आरोप है कि बिजली सिर्फ दिखावे के लिए मिलती है। सरकारी स्कूल है, पर पढ़ाई नहीं होती।
- गांवों में हायर सेकेंडरी तक भी स्कूल नहीं है। हॉस्पिटल नहीं होने से इलाज के लिए गांववाले मीलों दूर जाते हैं।
MLA बोले- इसके पीछे ओछी राजनीति
- पंजाब सरकार में हेल्थ मिनिस्टर और फाजिल्का से विधायक सुरजीत जियाणी का कहना है कि इसके पीछे विरोधियों की घटिया राजनीति है।
- एडिशन कलेक्टर चरणदेव सिंह मान ने कहा, ''नहरों में पूरा पानी आ रहा है। कुछ में कम हुआ था, जिसे जल्द पूरा कर देंगे। गांव बिकाऊ होने की जानकारी नहीं है।''
सरकारों से नहीं मिलती है कोई मदद
- किसान अश्वनी कुमार ने कहा, ''किसानों को पंजाब और केंद्र सरकार से कोई मदद नहीं मिलती।
- किसानों का ये भी आरोप है कि उनके गांव पंजाब, राजस्थान और हरियाणा तीनों राज्यों में से किसी में नहीं आते हैं।
- जब शिकायत लेकर सरकारी ऑफिस में जाते हैं, तो जवाब मिलता है- ''सरकार के लोग नहरों से सारा पानी अपने खेतों को सप्लाई कर लेते हैं।''

Saturday, May 19, 2012

स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग ही देश की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बना सकता हैं

15 September 2010 को अमेरिका की सरकार ने देश में "Made in America Act " पास कर के स्वदेशी का प्रयोग अमेरिका देश मैं आवश्यक कर दिया  क्योंकि स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग से ही देश की अर्थ व्यवस्था में सुधार होता है




Source : http://www.ibtimes.com/articles/62884/20100916/made-in-america-the-berry-amendment-extension-marcy-kaptur-larry-kissell-nancy-pelosi.htm

Monday, April 9, 2012

भारत में हर रोज 25 किसान आत्महत्या करते हैं

Source : http://hindi.ibtl.in/news/national/1993/article.ibtl

किसानों ने की आत्महत्या, farmers dying, indian farmers, upa, congress strategy, IBTL1

इन दिनों देश में किसानों की आत्महत्या का विषय पुन : चर्चा में है। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कपास के निर्यात पर प्रतिबंध के मात्र 120 घंटों के बाद ही रोक हटाकर पुन: निर्यात करने की घोषणा क्यों कर दी, इस पर शंका की सुई उनकी तरफ उठना स्वाभाविक था। लोकसभा में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले शिवसेना के सदस्यों ने इस पर भारी क्षोभ व्यक्त किया। महाराष्ट्र देश का एक बड़ा कपास उत्पादक प्रदेश है। कपास उत्पादक किसान आत्महत्या के लिए क्यों मजबूर होते हैं? इसकी जांच-पड़ताल की बातें तो होती हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय देश के सामने नहीं आया है। शिवसेना के प्रयासों से इस बार इस ज्वलंत प्रश्न पर डेढ़ घंटे की चर्चा का समय लोकसभा में निश्चित किया गया है। जब इस पर चर्चा होगी तो महाराष्ट्र की तरह देश में अन्य प्रदेशों के किसानों की आत्महत्या का मामला भी अवश्य उठेगा। कृषि राज्य क्षेत्र के अन्तर्गत आती है, लेकिन इसके आयात-निर्यात और ऋण संबंधी मामलों में केन्द्र सरकार का दखल निश्चित रूप से होता है। जब आत्महत्या का मामला सामने आता है तो यह कानून और व्यवस्था का भी एक अंग है। इसलिए केन्द्र सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती है।

सिर्फ चिंता : "नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो" द्वारा प्रस्तुत किये गए आंकड़ों के अनुसार 1995 से 2011 के बीच 17 वर्ष में 7 लाख, 50 हजार, 860 किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र के किसानों ने सबसे अधिक आत्महत्या की। भारत में धनी और विकसित कहे जाने वाले महाराष्ट्र में अब तक आत्महत्या का आंकड़ा 50 हजार 860 तक पहुंच चुका है। 2011 में मराठवाड़ा में 435, विदर्भ में 226 और खानदेश (जलगांव क्षेत्र) में 133 किसानों ने आत्महत्याएं की है। महाराष्ट्र के पश्चात् कर्नाटक, आंध्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का नम्बर आता है। आंकड़े बताते हैं कि 2004 के पश्चात् स्थिति बद से बदतर होती चली गई। 1991 और 2001 की जनगणना के आंकड़ों को तुलनात्मक देखा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि किसानों की संख्या कम होती चली जा रही है। 2001 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस वर्षों में 70 लाख किसानों ने खेती करना बंद कर दिया। 2011 के आंकड़े बताते हैं कि उपरोक्त पांच राज्यों में कुल 1534 किसान अपने प्राणों का अंत कर चुके हैं। प्रत्येक किसान समय पर अपना कर्ज खत्म करने का प्रयास करता है, किंतु फसलों की बर्बादी से वह ऐसा नहीं कर पाता है। इस चिंता में वह भीतर से टूट जाता है और अंतत: आत्महत्या का मार्ग चुन लेता है। कृषक बंधु अब खेती को घाटे का धंधा मानते हैं। इसलिए उनकी आने वाली पीढ़ी अपने मां-बाप की तरह कर्ज में न तो मरना चाहती है और न ही आत्महत्या करना चाहती है।

सूखे और बाढ़ का प्रकोप : किसान के सिर पर सूखे और बाढ़ का प्रकोप तो तलवार बन कर लटकता ही रहता है, लेकिन इसके साथ-साथ कभी फसल अच्छी हो गई तो पैदावार का सही मूल्य दिलाने में सरकार उत्साहित नहीं होती। खराब और घटिया प्रकार का बीज उसका दुर्भाग्य बन जाता है। लागत की तुलना में जब आय ठीक नहीं होती है तो वह सरकारी कर्ज चुकाने में असफल रहता है। किसानों की आत्महत्या के कारण विदर्भ में दिनों दिन विधवाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है। केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने इस बात का दावा किया था कि वर्ष 2010 में 365 किसानों ने आत्महत्या की थी। यानी एक दिन में एक, इनमें से मात्र 65 ने कर्ज के कारण आत्महत्या की थी। लेकिन राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो इस दावे की पूरी तरह से पोल खोल देता है। अब सवाल यह है कि जब सरकार लागत के अनुसार कपास की कीमत नहीं देती है तो फिर उसके निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाती है? इस बात को समझने के लिए कहीं दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। पिछले दिनों यह घटना घटी। 120 घंटे तक सरकार ने कपास के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए रखा। लेकिन न जाने क्या बात है कि हड़बड़ी में लगाए गए इस प्रतिबंध को सरकार ने कुछ शर्तों के साथ रद्द कर दिया। केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का तो कहना है कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है। लेकिन आनंद शर्मा ने इसका लूला-लंगड़ा बचाव किया। किन मिल मालिकों एवं धन्ना सेठों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से उन्होंने यह निर्णय लिया ये तो वे ही जानें। लेकिन जो समाचार मिल रहे हैं उनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार ने कुछ शक्तिशाली लोगों के लिए यह निर्णय लिया। उसके समाचार सारे देश में पहुंचे और सरकार आलोचना का शिकार बने इससे पहले ही अपने पाप को छिपाने का भरपूर प्रयास किया। निर्यात पर प्रतिबंध लगते ही भाव घटे जिसमें दलालों और पूंजीपतियों की चांदी हो गई। पिछले वर्ष भी ऐसा ही नाटक खेला गया था, जिसमें गुजरात के ही किसानों को 14 हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। इस बार कितना हुआ इसके आंकड़े अब तक उपलब्ध नहीं हुए हैं।

दूरदर्शिता की कमी : पिछली बार जब यह घटना घटी थी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि जब हमने प्रतिबंध लगाया उस समय चीन ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने कपास का भारी जत्था बेचने के लिए निकाला उससे चीन को भारी आय हुई। भारत सरकार में तनिक भी दूरदर्शिता होती तो इसका लाभ भारतीय किसान को मिलता। इस प्रकार का लाभ पहुंचाकर क्या भारत सरकार ने चीन के हौसले बुलंद नहीं किये? सरकार की इस अपरिपक्वता के रहते कोई किस प्रकार विश्वास कर सकता है कि हम चीन से आगे निकलेंगे और एक दिन महाशक्ति के पद पर प्रतिष्ठित हो जाएंगे। भारत में हर समय चीन की बात होती है। दुनिया में महाशक्ति बनने के लिए सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा चीन से है। चीन दुनिया में सबसे अधिक कपास पैदा करता है। विश्व में जितने हेक्टेयर पर कपास पैदा की जाती है उनमें हर चार में एक हेक्टेयर भारत के हिस्से में आता है। भारत में कुल 90 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती होती है। चीनी किसान का कपास पैदा कर के वारा-न्यारा हो जाता है, लेकिन भारतीय किसान के भाग्य में तो कपास के नाम पर आत्महत्या ही लिखी हुई है। 13 राज्यों के 40 लाख से अधिक किसान कपास की खेती करते हैं। 2009 में भारत के कुल निर्यात में 38 प्रतिशत कपास था, जिससे देश को 80 करोड़ रु. की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई थी। इसकी खेती के लिए मात्र कृषि मंत्रालय ही उत्तरदायी नहीं है, बल्कि वस्त्र और वाणिज्य मंत्रालया भी उत्तरदायी हैं। कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया की स्थापना 1970 में की गई, जो किसानों से कपास की खरीदी करती है। बेचारा किसान खुले बाजार में इसे नहीं बेच सकता है। इसलिए सरकार ही उसकी भाग्य विधाता बनकर उसका मूल्य तय करती है।

पशुपालन का सत्यानाश : भारत सरकार को क्या यह पता नहीं है कि सदियों से कृषि के साथ-साथ किसान कोई न कोई अन्य सहायक व्यवसाय भी करता रहा है। इसमें पशुपालन और मुर्गीपालन प्रमुख रूप से रहे हैं। भारत के असंख्य कुटीर उद्योग खेती पर ही निर्भर रहे हैं। लेकिन बड़े उद्योग लगाकर सरकार ने उन सबको किसान से छीन लिया है। दूध की डेरियां स्थापित करके पशुपालन का सत्यानाश कर दिया है। इसमें जो गाय और बैल का महत्व था उसे भुला दिया गया। महाराष्ट्र में पुणे के निकट तलेगांव के चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि भारत में लगभग आठ करोड़ बैल हैं। एक बैल आधा हॉर्स पावर बिजली का काम कर सकता है। पाटिल ने खेती और रोजमर्रा के काम आने वाली वस्तुओं के उत्पादन में बैल का उपयोग करके एक क्रांति पैदा की है। भारत सरकार बिजली तो दे नहीं सकती लेकिन इन बैलों से चार करोड़ होर्स पावर बिजली बचाने पर भी विचार नहीं कर सकती।

महाराष्ट्र में जब शिवसेना-भाजपा की सरकार थी, उस समय राज्य योजना आयोग में नियुक्त वरिष्ठ प्राध्यापक सरोजराव ठुमरे ने एक रपट पेश की थी जिसमें महाराष्ट्र के 20 जिलों का अध्ययन कर उन्होंने यह सुझाव दिया था कि जिस जिले में जिस चीज का उत्पादन होता है उसके आधार पर वहां लघु एवं कुटीर उद्योग की स्थापना की जा सकती है। सूरत के नौसारी कृषि विश्वविद्यालय में एक प्राध्यापक ने केले के तने और पत्ते के रेशों से उच्चकोटि का कागज बनाने की खोज की है। केले की खेती करने वाले कुछ देशों में इस कागज के नोट छापे जाते हैं। इससे दोहरा लाभ है। एक तो यह अपने देश की उपज से बनने के कारण सस्ता होता है और दूसरा उसकी नकल नहीं की जा सकती है। भारत सरकार किसानों को "आर्थिक पैकेज" का नाटक बंद करके वहां की स्थानीय खेती पर आधारित वस्तुओं का उत्पादन करने का मन बना ले तो किसानों की मौत का यह तांडव बंद हो सकता है।

Thursday, October 6, 2011

रोबर्ट क्लाइव [Robert Clive] 900 सोने चांदी के जहाज सिर्फ कलकत्ता के लूट कर ले गया था

 source :  http://www.bhaskar.com/article/INT-sea-of-churning-out-a-wealth-of-10-billion-2464911.html?HF-7=
मियामी। करीब 70 साल बाद ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत से लूटे गए खजाने से लदे एक ब्रिटिश जहाज ‘एसएस गायरसोपा’ को फ्लोरिडा की समुद्र खोजकर्ता कंपनी ‘ओडिसी मैरीन एक्सप्लोरेशन’ ने समुद्र की गहराइयों में खोज निकाला है।
इसमें 219 टन चांदी लदी हुई थी। चांदी की उस समय कीमत थी 6 लाख पाउंड थी, जिसकी वर्तमान कीमत 210 मिलियन डॉलर (करीब 10.30 अरब रुपए) आंकी गई है।
यह जहाज आयरलैंड से 490 किमी दूर अटलांटिक महासागर में डूब गया था। 1941 में कलकत्ता (कोलकाता) बंदरगाह से गालवे-आयरलैंड जाते समय समुद्री तूफान और जर्मनी की टॉरपीडो मिसाइलों के कारण। ये मिसाइलें इसलिए छोड़ी गई थीं क्योंकि उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था।
http://epaper.bhaskar.com/Details.aspx?id=103216&boxid=92814522890

७० साल पहले अंग्रेजों ने लूटा था, अब सागर में मिला हमारा खजाना
मई 2007 में भी ग्रिबाल्टर की खाड़ी में डूबे एक जहाज को खोजा गया था, जिसमें से 50 लाख चांदी के सिक्के मिले थे। इस जहाज का नाम था ‘ब्लैक स्वान’। यह 1804 में डूबा था और इसके खजाने पर स्पेन ने दावा किया था। यूनेस्को के अनुसार दुनियाभर के समुद्रों में करीब 30 लाख जहाज डूबे हुए हैं। जिनकी खोज हो तो खरबों रुपयों को खजाने प्राप्त हो सकते हैं।

८० फीसदी खजाना कंपनी का, बाकी ब्रिटेन का

प्रोजेक्ट मैनेजर एंड्रयू क्रेग ने बताया कि इस खजाने में से 80 फीसदी हमारी कंपनी को मिलेगा और शेष २० फीसदी ब्रिटेन की सरकार लेगी। यह इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी समुद्री खोज है।

कैसे खोजा

कंपनी ने रिमोट से चलने वाले ओडिसी एक्सप्लोरर को समुद्र में उतारा और ऊपर जहाज पर बैठ कर कम्प्यूटर के जरिए इसका संचालन किया। ये रोबोटिक समुद्री वाहन हजारों मीटर नीचे गहराई में उतर सकता है।

खजाने की कीमत

जहाज में लदे वस्तुओं की उस समय कीमत थी 6 लाख पाउंड, जिसकी वर्तमान कीमत 210 मिलियन डॉलर (करीब 10.30 अरब रुपए) आंकी गई है।

कहां डूबा

आयरलैंड से ४९० किमी दूर अटलांटिक महासागर में १५,४०० फीट नीचे।

१९४१ में २१९ टन चांदी ले जा रहा ब्रिटिश जहाज डूबा था अटलांटिक महासागर में

कैसे डूबा

फरवरी १९४१ में कलकत्ता (कोलकाता) बंदरगाह से गालवे-आयरलैंड जा रहा ४१२ फीट लंबे गायरसोपा जहाज को अटलांटिक महासागर में सामना करना पड़ा दो मुसीबतों का। एक तो समुद्री तूफान और दूसरा जर्मनी की टॉरपीडो मिसाइलों का। ये मिसाइलें इसलिए छोड़ी गई थीं क्योंकि उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था।

आयरलैंड के पास यहां पर डूबा था।

कोलकाता से चला था।

तस्वीरों में जहाज : कंपनी द्वारा जारी की गई तस्वीरों में जहाज पर बनी सीढिय़ां, डेक, कंपास और टॉरपीडो के हमले से बने छेद साफ तौर पर दिखाई दे रहे हैं। ये तस्वीरें ली हैं ओडिसी मैरीन एक्सप्लोरर के कैमरे से।

मियामी/नई दिल्ली. हमारा देश पहले सोने की चिडिय़ा था, जिसे पहले अंग्रेजों ने लूटा फिर मुगल शासकों ने। करीब ७० साल बाद ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत से लूटे गए खजाने की एक बार और पुष्टि हुई है। हुआ यूं कि हमारे खजाने से लदे एक ब्रिटिश जहाज ‘एसएस गायरसोपा’ को फ्लोरिडा की समुद्र खोजकर्ता कंपनी ‘ओडिसी मैरीन एक्सप्लोरेशन’ ने समुद्र की गहराइयों में खोज निकाला है। इसमें लदी हुई थी २१९ टन चांदी। इसके अलावा लोहा और चाय भी लदा हुआ था।

चाय : १,७६५ टन

लोहा : २,६०० टन

चांदी : २१९ टन 

हाल ही में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियोजित खोजी संस्था Odyssey Marine Exploration ने उत्तरी अटलांटिक महासागर में लगभग 4700 मीटर गहराई में एक ४१२ फुट लम्बी विशाल जहाज SS Gairsoppa को खोज निकाला है, जो भारत से इंग्लॅण्ड जाते हुए  17 फरबरी 1941 को समुन्दर में डूब गयी थी. इस जहाज में लगभग 200 टन चांदी के इलावा २६०० टन लोहा, 1765 टन चाय  आदि  पाई गयी है. ब्रिटिश सरकार भारत से तो खरीद करके लेने का तो कोई प्रमाण नहीं है, निश्चित ही यह भारत से लूट के ली जा रही थी. यह स्व. राजीव भाई के व्याख्यान को प्रमाणित करता है की अंग्रेज़ शासक भारत से मूल्यवान खनिज, सोना, चांदी, हीरे, जवारात आदि जहाज भर भर के अपने देश ले गए थे.




200 tonnes of silver seized from sunken ship from India

PTI | Sep 27, 2011, 06.59AM IST

LONDON: In one of the largest shipwreck hauls, nearly £150 million worth of silver has been found on a British ship that was travelling from India but was sunk by a German U-boat in the Atlantic in 1941. The wreck of SS Gairsoppa has been found to contain 200 tonnes of silver by the American exploration company, Odyssey Marine, which will keep 80% of the cargo's value according to a contract with the department of transport.


Only one person from the 85-strong crew survived the torpedo attack as the aging steamer tried to reach Ireland, according to the BBC. The ship was on its way back to Britain from India when it ran low on fuel in stormy weather, and tried to divert to Galway harbour, but it was spotted and sunk by the German submarine.


The wreck of the 412ft ship was found this summer nearly 4,700m below the North Atlantic, 300 miles off the Irish coast, but it was only confirmed as SS Gairsoppa last week. Work to recover the cargo will begin in the second quarter of 2012, Odyssey Marine's senior project manager Andrew Craig said.
Sources:
http://timesofindia.indiatimes.com/india/200-tonnes-of-silver-seized-from-sunken-ship-from-India/articleshow/10134924.cms



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200 Tons of Silver Found on WWII Ship

Analysis by Rossella Lorenzi Tue Sep 27, 2011 04:54 PM ET
Ladder
Ladder leading to the forecastle deck of the SS Gairsoppa. Courtesy: Odyssey Marine Exploration, Inc.
It was a stormy Second World War night when, on February 17, 1941, three lifeboats abandoned the SS Gairsoppa, a 412 foot-long British cargo ship en route from India to Liverpool, England.
In service of the Ministry of War Transport, the Gairsoppa was laden with tea, iron and tons of silver. Because of bad weather and insufficient coal, she was forced to break away from the military convoy off the coast of Ireland.
BLOG: Sunken Treasure Found in the Seas Of Sicily
As the captain re-routed in emergency for Galway, on the west coast of Ireland, the merchant steamship and its crew of 86 men were hit by a torpedo from a Nazi U-boat. She sank in icy seas within 20 minutes.
Left at the mercy of the winds and waves, two lifeboats soon disappeared. A third boat managed to sail for 13 days, with only one person, second officer Richard Ayres, surviving the long journey to shore.
Toilet 
An intact toilet sits on the bridge deck of the SS Gairsoppa. Courtesy: Odyssey Marine Exploration, Inc.
Now, 70 years after the dramatic sinking, treasure hunters have announced the discovery of the Gairsoppa's intact wreck about 300 miles off the coast of Ireland, at a depth of nearly three miles.
Laying deeper than the Titanic, the wreck is believed to hold the largest haul of precious metal lost at sea.
BLOG: 'Black Swan' Bounty Deal Revealed in Wikileaks Cables
According to U.S. underwater archaeology and salvage company Odyssey Marine Exploration Inc, up to 240 tons of silver, valued at more than $200 million, could be retrieved by next spring.
"We've accomplished the first phase of this project -- the location and identification of the target shipwreck -- and now we're hard at work planning for the recovery phase," Andrew Craig, Odyssey Senior Project Manager, said in a statement.
Stern compass
The stern compass discovered on the SS Gairsoppa. Courtesy: Odyssey Marine Exploration, Inc.
The wreck was found with the help of an underwater robot which took three and a half hours to descend to the bottom of the Atlantic Ocean.
The robot-captured video footage showed a unique view into the rusty ship, revealing a ladder leading to the forecastle deck, a stern compass, and even an intact toilet.
The torpedo hole in the hull, which featured the red-and-black colors used by the British Indian Steam Navigation Company, was also clearly visible.
Although none of the precious metal was filmed, Odyssey is confident that it is still there.
BLOG: Roman Shipwreck Full of Wine Jars Found
Indeed, video footage showed tea chests, which were reported to have been on board. The account indicated that the Gairsoppa carried 2600 tons of pig iron, 1765 tons of tea, 2369 tons of general cargo and 200 tons of silver ingots and coins.
"We were fortunate to find the shipwreck sitting upright, with the holds open and easily accessible. This should enable us to unload cargo through the hatches as would happen with a floating ship alongside a cargo terminal," Greg Stemm, Odyssey CEO, said.
The company was awarded an exclusive salvage contract by the British government in 2010. Under the agreement, Odyssey will retain 80 percent of the silver's value.

Source : http://news.discovery.com/history/silver-haul-gairsoppa-110927.html

Friday, September 9, 2011

Cold drink is not good for health

No Coke , Pepsi, etc. cold drinks from today!!!

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Pesticide use

In 2003, the Centre for Science and Environment (CSE),[11][12] a non-governmental organisation in New Delhi, said aerated waters produced by soft drinks manufacturers in India, including multinational giants PepsiCo and Coca-Cola, contained toxins including lindane, DDT, malathion and chlorpyrifospesticides that can contribute to cancer and a breakdown of the immune system. Tested products included Coke, Pepsi, and several other soft drinks (7Up, Mirinda, Fanta, Thums Up, Limca, Sprite), many produced by The Coca-Cola Company.
CSE found that the Indian produced Pepsi's soft drink products had 36 times the level of pesticide residues permitted under European Union regulations; Coca Cola's 30 times. CSE said it had tested the same products in the US and found no such residues.
Coca-Cola and PepsiCo angrily denied allegations that their products manufactured in India contained toxin levels far above the norms permitted in the developed world. David Cox, Coke's Hong Kong-based communications director for Asia, accused Sunita Narain, CSE's director, of "brandjacking" — using Coke's brand name to draw attention to her campaign against pesticides. Narain defended CSE's actions by describing them as a natural follow-up to a previous study it did on bottled water.[13]
In 2004, an Indian parliamentary committee backed up CSE's findings, and a government-appointed committee was tasked with developing the world's first pesticide standards for soft drinks. Coke and PepsiCo oppose the move, arguing that lab tests aren't reliable enough to detect minute traces of pesticides in complex drinks like soda.
The Coca-Cola Company has responded that its plants filter water to remove potential contaminants and that its products are tested for pesticides and must meet minimum health standards before they are distributed.[14]
Coca-Cola had registered a 11 percent drop in sales after the pesticide allegations were made in 2003.[15]
As of 2005, Coke and Pepsi together hold 95% market share of soft-drink sales in India.[13]
In 2006, the Indian state of Kerala banned the sale and production of Coca-Cola, along with other soft drinks, due to concerns of high levels of pesticide residue[16] On Friday, September 22, 2006, the High Court in Kerala overturned the Kerala ban ruling that only the federal government can ban food products.[17]

Source: http://en.wikipedia.org/wiki/Criticism_of_Coca-Cola


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Cancer fear over cola colourings: Call to ban ingredient used in Coke and Pepsi


An ingredient used in Coca-Cola and Pepsi is a cancer risk and should be banned, an influential lobby group has claimed.
The concerns relate to an artificial brown colouring agent that the researchers say could be causing thousands of cancers.
‘The caramel colouring used in Coca-Cola, Pepsi, and other foods is contaminated with two cancer-causing chemicals and should be banned,’ said the Center for Science in the Public Interest (CSPI), a health lobby group based in Washington, DC.
‘In contrast to the caramel one might make at home by melting sugar in a saucepan, the artificial brown colouring in colas and some other products is made by reacting sugars with ammonia and sulphites under high pressure and temperatures.
‘Chemical reactions result in the formation of two substances known as 2-MI and 4-MI which in government-conducted studies caused lung, liver, or thyroid cancer or leukaemia in laboratory mice or rats.’
America’s National Toxicology Program says that there is ‘clear evidence’ that both 2-MI and 4-MI are animal carcinogens, and therefore likely to pose a risk to humans.
Researchers at the University of California, Davis, found significant levels of 4-MI in five brands of cola.

Read more: http://www.dailymail.co.uk/health/article-1357787/Coca-cola-Pepsi-ingredient-cancer-risk-Call-ban-colouring-agent.html#ixzz1Ub1yo5Fg




Caramel Coloring In Coke Causes Cancer

Posted by majestic on February 18, 2011
Photo Credit: Jorge Bach, CSPI Photo Credit: Jorge Bach, CSPI
A few days ago it was revealed that diet soda can trigger strokes in regular drinkers of the sweet fizzy beverages. Now the Center for Science in the Public Interest is petitioning the U.S. Food and Drug Administration to prohibit what it says is carcinogenic “caramel coloring” (that is, not real caramel but synthetic, chemical “caramel”):
The “caramel coloring” used in Coca-Cola, Pepsi, and other foods is contaminated with two cancer-causing chemicals and should be banned, according to a regulatory petition filed today by the Center for Science in the Public Interest.
In contrast to the caramel one might make at home by melting sugar in a saucepan, the artificial brown coloring in colas and some other products is made by reacting sugars with ammonia and sulfites under high pressure and temperatures. Chemical reactions result in the formation of 2-methylimidazole and 4 methylimidazole, which in government-conducted studies caused lung, liver, or thyroid cancer or leukemia in laboratory mice or rats.
The National Toxicology Program, the division of the National Institute of Environmental Health Sciences that conducted the animal studies, said that there is “clear evidence” that both 2-MI and 4-MI are animal carcinogens. Chemicals that cause cancer in animals are considered to pose cancer threats to humans. Researchers at the University of California, Davis, found significant levels of 4-MI in five brands of cola.
“Carcinogenic colorings have no place in the food supply, especially considering that their only function is a cosmetic one,” said CSPI executive director Michael F. Jacobson. “The FDA should act quickly to revoke its approval of caramel colorings made with ammonia.”
Federal regulations distinguish among four types of caramel coloring, two of which are produced with ammonia and two without it. CSPI wants the Food and Drug Administration to prohibit the two made with ammonia. The type used in colas and other dark soft drinks is known as Caramel IV, or ammonia sulfite process caramel. Caramel III, which is produced with ammonia but not sulfites, is sometimes used in beer, soy sauce, and other foods.
Five prominent experts on animal carcinogenesis, including several who have worked at the National Toxicology Program, joined CSPI in calling on the FDA to bar the use of caramel colorings made with an ammonia process. “The American public should not be exposed to any cancer risk whatsoever as a result of consuming such chemicals, especially when they serve a non-essential, cosmetic purpose,” the scientists wrote in a letter to FDA Commissioner Margaret Hamburg.
CSPI also says the phrase “caramel coloring” is misleading when used to describe colorings made with ammonia or sulfite. The terms “ammonia process caramel” or “ammonia sulfite process caramel” would be more accurate, and companies should not be allowed to label any products that contain such colorings as “natural,” according to the group.
“Most people would interpret ‘caramel coloring’ to mean ‘colored with caramel,’ but this particular ingredient has little in common with ordinary caramel or caramel candy,” Jacobson said. “It’s a concentrated dark brown mixture of chemicals that simply does not occur in nature. Regular caramel isn’t healthful, but at least it is not tainted with carcinogens.”
In a little-noticed regulatory proceeding in California, state health officials have added 4 MI to the state’s list of “chemicals known to the state to cause cancer.”…


Coke, Pepsi Get Color from Cancer-Causing Chemicals.